गन्ने से सीताफल की ओर बदलाव
महाराष्ट्र के पुणे जिले के दौंड तहसील में रहने वाले Shridhar Divekar के परिवार ने दो पीढ़ियों तक तीन एकड़ जमीन पर गन्ने की खेती की। इससे मिलने वाली आमदनी सिर्फ घर चलाने के लिए काफी होती थी।

लेकिन जब Shridhar ने कृषि में स्नातक की पढ़ाई पूरी की, तब उन्होंने समझा कि गन्ना अब फायदे का सौदा नहीं है। उन्होंने सोचा कि ऐसी फसल की तरफ बढ़ा जाए जिसमें अच्छी आमदनी हो और देखरेख कम करनी पड़े।
सीताफल की खेती की शुरुआत
थोड़ी रिसर्च के बाद उन्होंने NMK-01 गोल्डन किस्म के सीताफल के बारे में जानकारी ली। यह किस्म कम बीज, ज़्यादा गूदा, लंबी शेल्फ लाइफ और उच्च पैदावार के लिए जानी जाती है।
साल 2016 में Shridhar ने सोलापुर के बार्शी के एक नर्सरी से 1148 पौधे खरीदे, जिनकी कीमत 75 रुपये प्रति पौधा थी। अब यही पौधे स्थानीय नर्सरी में 30 रुपये में मिलते हैं।
खेती का तरीका और जमीन की तैयारी
Shridhar ने बताया कि एक एकड़ में 350 से 400 पौधे लगाए जा सकते हैं। उन्होंने पौधे से पौधे की दूरी 8 फीट और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 14 फीट रखी है। पौधों को जून में लगाया जाता है।
उनकी जमीन पर काली कपास वाली मिट्टी है, जिसमें पानी रुक जाता है और इससे जड़ों को नुकसान हो सकता है। इसलिए उन्होंने उभरी हुई क्यारियां (raised beds) बनाई ताकि अतिरिक्त पानी बाहर निकल जाए।
मिट्टी का pH 6.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए। सीताफल में बीमारियाँ बहुत कम लगती हैं, सिर्फ फफूंदी से सावधानी रखनी होती है। सही पोषण देने से प्रत्येक पौधे से 20 से 30 किलो फल मिल सकता है।
पैदावार और मुनाफा
सीताफल चौथे साल फल देना शुरू करता है। श्रद्धार को 2020 में पहली फसल मिली, जब प्रत्येक पेड़ से औसतन 5 किलो फल निकले।
पिछले साल, उन्होंने 1100 पेड़ों से औसतन 22 किलो प्रति पेड़ फल निकाले, जिन्हें 80 रुपये प्रति किलो के भाव से बेचा।
तीन एकड़ से उन्हें कुल 18 लाख रुपये का टर्नओवर मिला यानी 6 लाख रुपये प्रति एकड़। यह आमदनी गन्ने की खेती से दोगुनी है, जिसमें पहले केवल 2.5 से 3 लाख रुपये मिलते थे।
खर्च निकालने के बाद उन्होंने बताया, “मैंने लगभग 14 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाया।”
जल्दी फसल से मिलते हैं ज्यादा दाम
Shridhar ने बताया कि वो बारिश का इंतज़ार नहीं करते, बल्कि ड्रिप सिंचाई प्रणाली का इस्तेमाल करते हैं। इससे उन्हें सीज़न की शुरुआत में ही अच्छे दाम मिल जाते हैं।
ड्रिप सिंचाई का एक बार का खर्च लगभग 80,000 रुपये प्रति एकड़ आता है, लेकिन यह बहुत प्रभावी तरीका है। इससे पानी और खाद सीधे जड़ तक पहुँचती है, और अगर बारिश के कारण पानी बाहर निकालना पड़े, तो खाद भी निकल जाती है। ड्रिप से यह नहीं होता।
Residue-free खेती और खाद प्रबंधन
Shridhar Residue-free farming करते हैं, जिसमें रसायनों का कम से कम उपयोग होता है। वो जैविक खाद और NPK (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम) का इस्तेमाल करते हैं। अप्रैल-मई में वह बल्क NPK खाद का छिड़काव करते हैं।
NMK-01 गोल्डन किस्म सीताफल के फायदे बताते हुए Shridhar कहते हैं, “यह किस्म उच्च आमदनी देती है और लागत भी कम होती है। इसलिए किसानों को इसे जरूर अपनाना चाहिए।”